HomeUncategorizedकोहिनूर का सफरनामा।

कोहिनूर का सफरनामा।

किसी के ताज में हजारों हीरे लगें हो पर किसी एक हीरे की चकाचौंध हजारों पर भारी पड़ जाए तो मान लीजिए कि वो कुछ खास होगा या यूं कहें दीजिए कि वो कोहिनूर होगा। जी हां कोहिनूर जिसका मतलब होता है।
mountain of light “पहाड़ जैसी रोशनी”. इस पहाड़ जैसी रोशनी वाले हीरे का सफरनामा बहुत ही दिलचस्प रहा। हाल ही के दिनों में ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय (Elizabeth II) के देहांत के बाद कोहिनूर लगातार खबरों में बना हुआ है। हम भारतीयों के लिए कोहिनूर हमेशा से ही संवेदनशील मामला रहा है और वक्त वक्त पर इसे वापस लाने की मांग पर उठते रहती है। और सरकारें हमेशा की तरह प्रयास करने का आश्वासन देते रहती है। पर आज हम बात करेंगे कोहिनूर के ब्रिटेन पहुंचने तक की कहानी के बारे में।

कोहिनूर के बारे में कहा जाता है जो कोहिनूर का मालिक होगा वह पूरी दुनिया का मालिक होगा पर उसे पूरी दुनिया के दुर्भाग्य भी मिलेंगे। यह बात इसलिए भी कही जाती है क्योंकि आज तक कोहिनूर जिनके पास भी रहा उनकी जिंदगी खून खराबे, लड़ाई और धोखे से भरी रही है।

कोहिनूर पाए जाने की कहानी में बहुत ही अपवाद है पर पहली बार कोहिनूर का जिक्र बाबरनामा में पाया जाता है। बाबर ने कोहिनूर को जीत की निशानी बताया था। उसके बाद सन् 1628 में कोहिनूर का जिक्र एक बार और आता है वह भी शाहजहां के द्वारा। शाहजहां के प्रसिद्ध मयूर सिंहासन के बारे में आप सभी ने सुना होगा जिसके बारे में कहा जाता है कि शाहजहां ने अपने मयूर सिंहासन में मोर की आंखों पर कोहिनूर हीरा लगवाया था। उसके बाद दिल्ली सल्तनत पर अफगानी शासक नादिर शाह ने सन् 1739 हमला किया।

इस लड़ाई में नादिर शाह ने दिल्ली सल्तनत के आखरी शासक मोहम्मद शाह को हरा दिया और कोहिनूर को अपने कब्जे में ले लिया। आने वाले 70 सालों तक कोहिनूर अफगानिस्तान में रहा। सन् 1747 में नादिर शाह पर कोहिनूर का दुष्प्रभाव देखा जा सकता है जब उन्हीं के अंगरक्षक ने उनकी हत्या कर दी उसके बाद उनका साम्राज बर्बाद हो गया‌। सन् 1809 आते-आते कोहिनूर लाहौर पहुंच चुका था सिख साम्राज्य के स्थापक रंजीत सिंह के पास, रंजीत सिंह को शेरे ए पंजाब कहा जाता था। समय के साथ भारत पर ईस्ट इंडिया कंपनी की पकड़ मजबूत होती जा रही थी 1839 में रंजीत सिंह की मृत्यु के बाद सिख समराज कमजोर होता रहा।

आखिर में 1849 की लड़ाई के बाद अंग्रेज ने पंजाबी साम्राज्य का खात्मा कर दिया उसके बाद रंजीत सिंह के 10 साल के पुत्र दलीप सिंह से Treat of Lahore पर तखत कराया गया जिस में विशेष रूप में यह लिखा गया था कि वो कोहिनूर हीरा को ईस्ट इंडिया कंपनी को सौंप देंगे। इस तरह से कोहिनूर हीरा भारत से ब्रिटेन पहुंच गया और अपनी चमक से आज भी ब्रिटेन का ताज चमका रहा है।

कोहिनूर के 800 साल के इतिहास में सबसे ज्यादा 173 सालों से कोहिनूर ब्रिटिश के पास रह रहा है।
भारतीय हमेशा से कोहिनूर हीरे को लेकर संवेदनशील रहे हैं कांग्रेस नेता शशि थरूर ने 2015 में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में अपने भाषण के दौरान कहा था कि अंग्रेजी हुकूमत के अंदर भारत आर्थिक मोर्चे पर बदहाल रहा और कोहिनूर इसी तानाशाही की एक निशानी है। कोहिनूर की मांग सिर्फ भारत की तरफ से ही नहीं है पाकिस्तान ,अफगानिस्तान और ईरान के द्वारा भी की जाती है। यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकारी कोहिनूर को वापस लाने के लिए कोई ठोस कदम उठाती है या नहीं।

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